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आखिर कैसे बना 15000 ft. की ऊंचाई पर हेमकुंड साहिब गुरूद्वारे का स्ट्रक्चर, क्यूं भारी हिमपात व बारिश से भी नहीं पहुॅचता कोई नुकसाान…? Hemkund Sahib Gurudwara

कैसे बना हेमकुंड साहिब गुरूद्वारा ?Hemkund Sahib Gurudwara
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बर्फ से ढकी सात पहाडियों के बीच 15 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब सिखों का पवित्र धार्मिक स्थल हैं। यहॉ हर साल लाखों श्रद्वालु पहुचते हैं। बर्फ की झील के किनारे बना यह गुरूद्वारा अपने आप में अद्वभुत व आकर्षक लगता है, लेकिन क्या अपको मालूम है कि हेमकुंड साहिब की खोज किसने की थी ओर यहॉ यह स्ट्रक्चर किसने बनाया। अगर नही तो ये पोस्ट पढ़ने के बाद आपको सबकुछ समझ में आ जायेगा।

कैसे बना हेमकुंड साहिब गुरूद्वारा ?Hemkund Sahib Gurudwara
कैसे बना हेमकुंड साहिब गुरूद्वारा ? Hemkund Sahib Gurudwara

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका यूके पीडिया में
दोस्तों दशम ग्रंथ में वर्णित है कि सात पहाड़ियों से घिरे हुए इस सुमेर पर्वत पर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने तपस्या की थी। कहा जाता है कि इस तपोस्थान की खोज 1930 में संत सोहन सिंह और हवलदार मोदन सिंह ने की थी।
सबसे पहले 1937 में एक झोंपड़ी बनाकर वहां श्री गुुरु ग्रंथ साहिब जी को सुशोभित किया गया था। जिसके बाद 1960 में यहीं पर 10 वर्ग फीट का कमरे का निर्माण कर गुरुद्वारा साहिब का रूप दिया गया था।
लेकिन यह वह आकार नहीं था जैसा इसे होना था, क्योंकि इतनी उंचाई पर और वह भी जहॉ साल के 6-7 महीनें 10 फीट तक बर्फ गिरती हो वहॉ ऐसे गुरूद्वारे का टीक पाना असंभव था।

ठीक इसी समय 1960 के दशक के मध्य में मेजर जनरल हरकीरत सिंह, इंजीनियर-इन-चीफ, भारतीय सेना ने गुरुद्वारे का दौरा किया था। इस दौरान उन्होनें हेमकुंड साहिब (Hemkund Sahib) में गुरूद्वारा निर्माण का जिम्मा लिया। और यहॉ एक अद्वभुत गुरूद्वारा बनाने का सपना देख लिया। मेजर जनरल हरकीरत सिंह (Major General Harkirat Singh) ने डिजाइन और निर्माण प्रयास का नेतृत्व करने के लिए सैन्य इंजीनियरिंग सेवा (एमईएस) के आर्किटेक्ट मनमोहन सिंह सियाली को चुना। इसके बाद सियाली ने हेमकुंड साहिब की वार्षिक यात्रा (Hemkund Sahib Yatra) की और यहॉ जटिल निर्माण का मॉडल तैयार करने की कोशिश की। कई मॉडल बनाये गये लेकिन कोई भी यहॉ की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुये सटीक बैठता हुआ नहीं दिखा। क्योंकि गुरुद्वारा साहिब (Gurudwara Sahib) के लिए एक ऐसा स्ट्रक्चर चाहिए था जो बारिश, बर्फबारी और तुफानी हवाओं में भी खराब न हो सके। इसी को लेकर देश के आर्किटेक्चरों व सर्वेयरों ने इस दुर्गम स्थान का कई बार दौरा किया।

वक्त था 1967 का…….
आर्किटेक्ट मनमोहन सिंह सियाली ने सहयोगियों की मदद से गुरुद्वारा स्ट्रक्चर का डिजाइन इस तरह तैयार किया जिससे इस पर बर्फीली जलवायु का कोई असर न हो। कई साल इसकी रूपरेखा तैयार करने में लग गए। उसके बाद स्ट्रक्चर निर्माण का काम दिल्ली के एक ठेकेदार को सौंपा गया। जिसने आर्किटेक्चरों की देखरेख में इसे तैयार किया। दिल्ली के गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब (Rakab Ganj gurudwara) के पास पूरा स्ट्रक्चर एसेंबल किया गया। अब सबसे बड़ा चैलेंज इस स्ट्रक्चर को दुर्गम स्थान तक पहुंचाना था। गोविंदघाट (Govindghat) तक तो स्ट्रक्चर को सड़क मार्ग से पहुॅचा दिया गया। लेकिन इस दुर्गम रास्ते से स्ट्रक्चर को हेमकुंड साहिब तक पहुॅचाना चुनौति बन गया। लिहाजा स्ट्रक्चर के अलग-अलग पार्ट बनाए गए। जिसे गोविंदघाट से उबड़-खाबड़ व पथरीले रास्ते से मजदूरों ने श्री हेमकुंट साहिब तक पहुंचाया। अब यहॉ इस ढॉचे को खडा करना व इसे एक आकार देना भी किसी चुनौती से कम नहीं था। क्योंकि इतनी ऊंचाई अनुकुल परिस्थति, सर्द मौसम, बर्फबारी व साशन की कमी के बीच कार्य करना किसी चुनौती से कम नहीं था। बावजूद इसके अथक प्रयास और मेहनत के बाद स्ट्रक्चर को हेमकुंड साहिब में इंस्टाल किया गया। पूरी तरह यह स्टकच्र 1981 से 82 के बीच में इंस्टाल हुआ। आर्किटेक्ट मनमोहन सिंह सियाली, सीपी घोष, केए. पटेल, मेजर जनरल हकीकत सिंह, साहिब सिंह, गुरशरण सिंह सहित समेत कई लोगों ने इस दुर्गम स्थान पर स्टील का पक्का स्ट्रक्चर बनाने में योगदान दिया था। आज भी हेमकुंड साहिब में यह अद्वितीय डिजाइन और निर्माण चमत्कार के रूप में अपनी शान के साथ खड़ा है और करोड़ो लोगों की आस्था का केन्द्र है।

हेमकुंड साहिब गुरूद्वारे से जुड़ी इस जानकारी को विडियो के माध्यम से देखने के लिये नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करें –

https://www.youtube.com/watch?v=yQLbNiL1I1Y

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