केन्द्र सरकार द्वारा इन दिनों ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटन व जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए अमृत सरोवार योजना चलाई जा रही है। योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में अमृत सरोवर बनने हैं। लेकिन कई जगह इस योजना को केवल खानापूर्ती तक ही सीमित किया गया है। न तो सही स्थान का चयन किया गया है और न ही सरोवर निर्माण से पूर्व ग्रामीणों की राय ली गई है। कुछ ऐसी ही तस्वीर चमोली जनपद के थराली ब्लॉक के कूनि-पार्था गांव की है। यहॉ अमृत सरोवर का निर्माण किया जाना है। लेकिन जिस स्थान पर यह निर्माण कार्य किया जा रहा है वह भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र है। ऐसे स्थान पर सरोवर का निर्माण करवाना भविष्य के लिए किसी बड़े खतरे को जन्म देना है।
स्थानीय युवा रतन पिमोली पुत्र रंजीत पिमोली बताते हैं कि उनके घर से महज कुछ ही दूरी पर निंगडी खेत सलतर में यह निर्माण कार्य किया जा रहा है। जहॉ पर तालाब ने बनना है, उससे महज 100 से 150 मीटर की दूरी पर 5 से 7 परिवार रहते हैं। यह पूरा क्षेत्र भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र है। कई बार यहॉं भूस्खलन की घटनायें सामने आ चुकी है। उक्त स्थान पर सरोवर न बनाये जाने को लेकर ग्राम प्रधान से भी आग्रह किया गया लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों प्रतिनिधियों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी।
ग्राम प्रधान प्रमिला पिमोली ने बताया कि अमृत सरोवर योजना के तहत जो झील गांव में बननी है उसके मानक कम हैं। यह झील 25 मीटर चौड़ी व 1 मीटर ऊंची बननी है। जिससे किसी भी तरह का कोई खतरा ग्रामीणों को नहीं है। वहीं उन्होनें बताया कि यहॉ निर्मित सरोवर की लागत 3 लाख रूपये हैं। अगर यहॉ रह रहे लोगों को दिक्कत थी तो उद्वघाटन के दिन अपनी आपत्ति रखते।
बताते चले कि केन्द्र सरकार की महत्वकांशी अमृत सरोवर झील का मुख्य उद्वेश्य पर्यटन को बढ़ावा देना। भूमिगत पेयजल स्त्रोतों को रिचार्ज करना, मिट्टी की नमी को बनाये रखना है। लेकिन कूनि-पार्था के जिस भूस्खलन प्रभावित इलाके में यह सरोवर बन रहा है वहॉ 65 मीटर बड़े एक तालाब का निमार्ण करवाना भविष्य के लिए किसी टाईम बम के बनाने सा है। क्यूंकि जिस दिन यह क्षतिग्रस्त होगा उस दिन पानी का जनसैलाब इसके मुहाने पर बसे घरों को तहस-नहस कर देगा। मानसून के दौरान यहॉ के रास्ते गदेरों में तब्दील हो जाते हैं। यहॉ मिट्टी का क्षरण तेजी से हो रहा है ऐसे में इतनी भारी भरकम योजना के तहत यहॉ तालाब निर्माण करवाने से बेहतर लंबी जडों वाले वृक्षो के रोपण की आवश्यकता है। जिससे की मृदा का अपरदन रोका जा सके।हालांकि ग्राम प्रधान ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि गांव में इतनी बड़ी झील का निर्माण नहीं करवाया जा रहा है। न ही इससे किसी प्रकार की कोई जनहानी होने की संभवानाएं है। यह 3 लाख की लागत से एक छोटी झील बन रही है।