मनोज उनियाल
श्रीनगर। शादी, नामकरण आदि शुभ कार्यों पर उत्तराखण्ड की संस्कृति में मंगल (शुभ)गीत गायें जाते हैं। गढ़वाल में यही शुभ गीत मांगल (Maangal Geet) नाम से प्रचलित हैं। लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में ये गीत विलुप्ति के कगार पर पहुँच गए हैं। उत्तराखण्ड की इस समृद्ध परंपरा के संरक्षण एवं संवर्धन के उद्देश्य से गढ़वाल विवि के लोक कला संस्कृति केन्द्र की पहल पर चौरास परिसर में मांगल गायन प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। जिसमें क्षेत्र की महिलाओं व विवि के छात्र छात्राओं ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया।
वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी प्रो. डीआर पुरोहित ने कहा कि विभाग का उद्देश्य अपनी इस लोक परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाना है। ताकि नई पीढ़ी इस परंपरा को जान सके और इसके संवर्धन के लिए अपने स्तर से प्रयास करे। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. संजय पाण्डे ने बताया कि भिन्न भिन्न क्षेत्रों से मांगल गायकों को प्रशिक्षण हेतु बुलाया गया है। साथ ही क्षेत्र के संस्कृतिकर्मियों, महिलाओं व विद्यालयों को कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है। प्रथम चरण में नंदप्रयाग से बीरा देवी द्वारा मांगल गीतों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
कार्यक्रम में ई. महेश डोभाल व डॉ. सर्वेश उनियाल ने सहयोग दिया। इस अवसर पर सुमन लखेड़ा, दर्शनी सेमवाल, बीना नेगी, कुसुम रावत, किरन जोशी आदि मौजूद रहे।