देवभूमि के लाल अल्मोड़ा जिले के रहने वाले युवा बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन ने राष्ट्रमंडल खेलों में एक इतिहास तो बनाया ही वहीं देश को गौरांवित करने का काम किया है। लक्ष्य सेन की ऐतिहासिक जीत पर पूरा देश खुशी से झूम रहा है।
भारतीय बैडमिंटन टीम के सदस्य लक्ष्य सेन ने अपने ‘लक्ष्य’ से न चूकते हुए आज कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को गोल्ड दिलाया। लक्ष्य सेन ने पुरुष एकल के फाइनल में मलेशिया एंग जे यॉन्ग को हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया है। उनका राष्ट्रमंडल खेलों में यह पहला पदक है। उनकी इस जीत के पीछे उनकी कड़ी मेहनत और उनके पिता व कोच डीके सेन का बड़ा हाथ है।
लक्ष्य के पिता डीके सेन बैडमिंटन के जाने-माने कोच हैं और वर्तमान में प्रकाश पादुकोण अकादमी से जुड़े हैं। पिता की देखरेख में लक्ष्य ने होश संभालते ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था। वह चार साल की उम्र में ही स्टेडियम जाने लगे थे। छह-सात साल की उम्र में ही उनका खेल देखकर लोग हैरान हो जाते थे। राष्ट्रमंडल खेलों में गोल्ड मेडिल जितने वाले भारत के चौथे खिलाड़ी बन गए। सबसे पहले बैटमिंटन राष्ट्रमंडल में 1978 में प्रकाश पादुकोण ने गोल्ड मेडिल जीता था दूसरी बार 1982 में सैयद मोदी, तीसरी बार 2014 में पी कश्यप ने