आर्टिकल- नीरज काला
श्रीनगर गढ़वाल (Srinagar Garhwal)
अलकनंदा नदी के किनारे स्थित श्रीनगर गढ़वाल का इतिहास तकरीबन 5000 साल पुराना है। दिल्ली की तरह यह शहर भी कई बार उजड़ा ओर बसा है, परंतु इतनी चुनोतियों का सामना करने के बाद भी इस शहर ने अपने मूल स्वरूप को कभी नही खोया। श्रीनगर गढ़वाल समुद्री तल से 560 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। जो चारों तरफ से पहाड़ो से घिरा है, यह शहर आध्यात्मिक ओर पौराणिक मान्यताओं का केंद्र रहा है। पुराणों, इतिहासकारों की लिखी किताबों, अंग्रेज प्रशासको द्वारा लिखी पुस्तिकाओ में इस शहर का इतिहास खुली किताब की तरह बिखरा पड़ा है।
पौराणिक कथाओं में श्रीनगर का उलेख (Mention of Srinagar in Mythology)
स्कन्द पुराण के केदारखंड में श्रीनगर का उलेख श्री क्षेत्र से रूप में किया गया है। इसके अनुसार श्रीनगर को भगवान शिव की तप स्थली माना जाता है, महाभारत काल में इसे श्री पुर कहा जाने लगा और यह कुलिंद राजा सुबाहु की राजधानी हुआ करता था। यह भी प्रचलित है कि स्वर्गारोहण के समय पांचो पांडव और द्रौपदी श्रीनगर में ही रुके थे ।
श्रीनगर के गढ़वाल कि राजधानी बनने की कहानी (Story of Srinagar becoming the capital of Garhwal)
गढ़वाल 52 गढ़ो से मिलकर बना था, राजा कनकपाल के वंशज राजा अजयपाल पँवार राजधानी को देवलगढ़ से श्रीनगर लेकर आये थे , इस संबंध मे एक कहानी है –
कहा जाता है कि एक दिन राजा अजयपाल अपने साथियों औऱ शिकारी कुत्तों को लेकर शिकार के लिए निकाल पड़ते हैं वे अलकनंदा नदी के किराने पहुँचते है और वहाँ का विशाल जंगल देख कर सोचते है कि यहाँ तो शिकार करने के लिए बहुत जंगली जानवर होंगे,राजा अजयपाल Ajaypal ने वहां बड़े बड़े खंडर भी देखे तो वो समझ गये की कभी यहाँ एक बड़ा शहर हुआ करता होगा, तभी राजा अजयपाल देखते है कि उनका एक शिकारी कुत्ता एक खरगोश के पीछे दौड़ता है परंतु यह खरगोश नदी पार कर नदी की दूसरी तरफ चला गया, खरगोश ओर कुत्ते की लड़ाई में खरगोश कुत्ते को मार देता है ओर वहाँ से अदृश्य हो जाता है, राजा और उन के साथियों को यह देख विश्वास नही हुआ,
राजा अजयपाल सोचते है कि उस जगह पर कुछ न कुछ खास बात है तो वह रात वहीं अलकनंदा नदी के किराने बिताने का निर्णय करते है , रात को राजा को एक स्वपन होता है, राजा अजयपाल के सपने में उस क्षेत्र की देवी श्री भगवती आती है, ओर कहती है कि ष् राजा यह स्थान सिद्ध है यहाँ अलकनंदा नदी Alaknanda River के मध्य में एक शिला पर श्रीयंत्र है जिस कारण ही इस क्षेत्र का नाम श्री क्षेत्र हैं। उसी श्रीयंत्र के कारण ही एक निर्बल खरगोश ने एक शक्तिशाली कुत्ते को मार दिया, तू इस स्थान को अपनी राजधानी बना और नित्य मेरी पूजा कर ,तब तेरे लिए ये बातें सिद्ध होंगी ,राजा अजयपाल की नींद खुलती है और वो सबसे पहले उस स्थान की पूजा करते है और अपनी राजधानी को देवलगढ़ से श्रीनगर स्थान्तरित करने का फैसला करते है, श्रीनगर सन 1515 से 1803 तक पँवार राजाओ की राजधनी के रूप में रही।
श्रीनगर में गोरखाओं का शासन (Gorkhas rule in Srinagar)
साल 1803 में आये विशाल भूकंप के कारण गढ़वाल की सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था कमजोर हो गयी थीं। इसके साथ ही गढ़वाल की सैन्य शक्ति भी कम हो गयी थी। गोरखाओं ने इन परिस्थितियों का लाभ उठा कर साल 1804 में गढ़वाल पर आक्रमण कर दिया ओर यहाँ पर अपना अधिकार जमा लिया। गोरखाओं ने भी श्रीनगर को अपना प्रशासनिक मुख्यालय बनाया। गोरखाओं ने गढ़वाल पर 1804 से 1815 तक राज किया, इसके बाद श्रीनगर गढ़वाल ब्रिटिश गढ़वाल का हिस्सा बन गया था ।
राजा अजयपाल की राजधानी श्रीनगर और आज के श्रीनगर में अंतर
“स्कॉटलैंड की तर्ज पर बसाया गया श्रीनगर को”(Srinagar was built on the lines of Scotland)
आज का श्रीनगर Srinagar Garhwal राजा अजयपाल की राजधानी वाला श्रीनगर नही है। राजा अजयपाल के समय श्रीनगर आज के भक्तियाना Bhaktiyana ओर शक्ति बिहार Shakti Vihar वाले क्षेत्र में स्थित था। जो कि साल 1803 के आये विशालकाय भूकम्प ओर साल 1894 की वेहरी गंगा की बाढ़ के कारण तबाह हो गया था। जिसमे श्रीनगर पूरी तरह से खत्म ओर नष्ट हो गया था। साल 1895 में तात्कालिक ब्रिटिश कमिशनर ए के पॉल द्वारा बनाये गए एक मास्टर प्लान के अनुसार वर्तमान क्षेत्र पर श्रीनगर का पुनर्स्थापन किया गया है। ए के पॉल AK Paul स्कॉटलैंड के निवासी थे इस कारण उन्होंने स्कॉटलैंड की तर्ज पर ही श्रीनगर को बनाया और बसाया है , जो की आज का आधुनिक श्रीनगर है ।
शिक्षा के हब में विकशित हुए श्रीनगर की रूपरेखा (Srinagar developed into a hub of education)
- हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय HNB Garhwal University – उत्तराखण्ड़ जब उत्तरप्रदेश के हिस्सा हुआ करता था उस वक्त के उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा Hemvati Nandan Bahuguna द्वारा साल 1973 में श्रीनगर में प्रथम उच्च शिक्षण संस्थान की घोषण की थी। साल 1989 में इस गढ़वाल विश्वविद्यालय Garhwal University का नाम हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय कर दिया गया। साल 2009 में इस राजकीय विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय Central University में बदल दिया गया। हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय उत्तराखण्ड़ का एक मात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय है। जिसमे पूरे उत्तराखण्ड़ से बच्चे सुनहरे सपनो को साकार करने के लिए पढ़ने आते हैं।
- श्रीनगर का सबसे पुराना स्कूल – श्रीनगर का सबसे पुराना विद्यालय राजकीय इंटर कॉलेज जो कि अंग्रेजों के शासन काल से चला आ रहा है। इसकी स्थापना 1901 में हुई थी साल 1954 में यह विद्यालय हाई स्कूल बनाया गया। इसके बाद यह इंटर तक बढ़ाया गया, उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा जी भी इसी राजकीय इंटर कॉलेज श्रीनगर GIC Srinagar Garhwal से पढ़े हुए है। आज के समय श्रीनगर में ना जाने कितने नए विद्यालय बन चुके है जिन में हज़ारो छात्र अपनी शिक्षा लेते है।
- वीर चन्द सिंह गढ़वाली राजकीय आयुर्वेद विज्ञान एवं शोध संस्थान Veer Chand Singh Garhwali Government Institute of Ayurveda Science and Research
– शिक्षा के क्षेत्र में एक ओर कदम रखते हुए 15 जनवरी 2008 को श्रीनगर में राजकीय मेडिकल कॉलेज की शूरूआत की गई। जिसका नाम 15 जुलाई 2008 को वीर चन्द सिंह गढ़वाली राजकीय आयुर्वेद विज्ञान एवं शोध संस्थान के नाम पर परिवर्तित कर दिया गया । - एनआईटी श्रीनगर NIT Srinagar- शिक्षा का एक केंद्र बिंदु एनआईटी श्रीनगर भी है इसकी स्थापना श्रीनगर में साल 2009 में हुई थी। 2010- 11 में इस में छात्रों के प्रथम बैच को प्रवेश मिला, यहाँ बीटेक एमटेक में कोर्स कराए जाते है।
श्रीनगर गढ़वाल के ऐतिहासिक मंदिर (Historical Temples of Srinagar Garhwal)
1.कमलेश्वर महादेव मंदिर Kamleshwar Mahadev Tempel
कमलेश्वर मंदिर श्रीनगर में सबसे पुराने मंदिरों में से एक है यहां भगवान शिव की पूजा की जाती है, कमलेश्वर महादेव मंदिर में हर साल बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन के अवसर पर एक विशेष पूजा होती है यहाँ एक मान्यता है कि अगर कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन निरूसंतान दंपति खड़े दीये के पवित्र अनुष्ठान में शामिल हो तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है.
2. धारी देवी मंदिर Dhari Devi Tempel
यह मंदिर श्रीनगर से 15 किलोमीटर दूर धारी गांव के पास स्थित है। यह मंदिर अलकनंदा नदी के बीचों बीच स्थित है।यह कहा जाता है कि माँ दिन भर में तीन बार अपना रूप बदलती है। जिसमे मूर्ति सुबह एक कन्या की तरह दिखती है, दोपहर में युवती और शाम को एक वृद्ध महिला की तरह नजर आती है। माँ धारी देवी को देवभूमि उत्तराखंड की रक्षक के रूप में जाना जाता हैं। माता के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं।
3. किलकिलेश्वर महादेव मंदिर Kilkileshwar Madaev Tempel
यह मंदिर श्रीनगर गढ़वाल के दूसरी छोर पर स्थित है। यहाँ भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है। इस मन्दिर की स्थापना आदि गुरु शकराचार्य ने की थी। इस मंदिर का अपना एक महत्वपूर्ण इतिहास है। यहां दूर दूर से लोग भगवान शिव की पुजा कारने आते है।
4. गुरु गोरखनाथ गुफा Guru Gorakhnath Cave
गुरु गोरखनाथ का मंदिर शकर मठ के सामने, पहाड़ी ढलानों से एक विशाल चट्टान में फैला हुआ है। यह वह जगह है जहां गुरु गोरखनाथ ने ध्यान लगाया और जहां उन्होंने अपने शिष्यों से मुलाकात भी की थी। उन्होंने इस चटान पर तपस्या की ओर यही पर समाधि ली थी।
कभी गढ़वाल की सत्ता का केंद्र रहा श्रीनगर आज भी उत्तराखंड की सत्ता का एक केंद्र बिंदु है। यह सांस्कृति, धार्मिक स्थल के साथ-साथ शिक्षा का भी एक बड़ा केंद्र बन कर उभर रहा है ओर हर दिन बदल रहा है।