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उत्तराखंड में 7 नए जिले बनाने की तैयारी में सरकार, जानिए क्या होता है जिला बनाने का पूरा प्रोसेस, ये हो सकते हैं उत्तराखण्ड़ के नये जिले

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आर्टिकल- नीरज काला

रोजगार,अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था, बेहतरीन शिक्षा प्रणाली ,पयालन को रोकने एवं पहाड़ो के सम्पूर्ण विकास की मांग को लेकर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से अलग होकर 9 नवंबर 2000 को अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया,राज्य के गठन के समय से ही उत्तराखंड में 13 जिले मौजूद है। परंतु राज्य गठन से वर्ष 2022 तक 22 सालों में समय-समय पर अलग जिलों की मांग उठती रही है। उत्तराखंड राज्य में इन 22 सालों में अलग अलग पार्टीयो की सरकारें रही हैं। परंतु आज तक कोई भी सरकार इस मसले को लेकर कोई बड़ा कदम नही उठा पाई, देश में भी अलग अलग समय पर अलग अलग राज्यों में नये जिलों की मांग उठती रही है , साल 1961 के बाद से देखा जाये तो देश में जिलों की संख्या दोगुनी हो गयी है। साल 1961 में देश में 339 जिले थे परंतु आज साल 2022 में जिलों के गठन होते होते ये संख्या 757 पहुँच गयी है परंतु इस सबमें सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि

  • आखिर एक जिला कैसे बनाया जाता है..After all, how district formed ? 
  • कौन इन जिलों का गठन करता है.. who constitutes the districts ?
  • क्या नियम और पैमाना है. What are the rules and standards.?
  • क्या जरूरी बातें ध्यान में रखी जाती है..?
  • और ये किस प्रकार से विकास को आगे बढ़ाते है ?

उत्तराखंड में लम्बे समय से नये जिलों की मांग (Demand for new districts in Uttarakhand for a long time) –

मुख्यमंत्री धामी ने 7 नए जिलों के पुनर्गठन के लिये कवायत शुरू कर दी है 7 new districts in Uttarakhand जिसमे ऋषिकेश, पुरोला,रुड़की, कोटद्वार,काशीपुर, रानीखेत एवं डीडीहाट के नाम शामिल है।
नये जिलों की मांग कोई नयी नहीं है, इस मसले की शुरूआत स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 15 अगस्त साल 2011 में हुई जब, तब के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक Ramesh Pokhriyal Nishank  ने उत्तराखंड में 4 नये जिलों की घोषणा की थी 4 new districts in Uttarakhand, इसमें उत्तरकाशी से यमुनोत्री, पौड़ी से कोटद्वार, पिथौरागढ़ से डीडीहाट और अल्मोड़ा से रानीखेत क्षेत्रों का नाम नये जिलो को बनाने में शामिल था। निशंक के जाने के बाद 10 दिसंबर 2011 को मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी द्वारा इस सम्बंध में जीओ भी जारी किया गया था, परंतु ये प्रक्रिया आगे नही बढ़ पाई। विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार मे आ गयी और बात ठंडे बस्ते में चली गयी, साल 2017 मे दुबारा भाजपा की सरकार आई परंतु उस समय नये जिलों की बात को कोई अहमियत नही मिली। इस बीच एक बार फिर 2022 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को प्रजंड बहुमत मिला। भाजपा 2.0 के मौजूदा कार्यकाल में मुख्यमंत्री धामी के एक बयान ने फिर उत्तराखंड में नये जिलों के गठन की मांग को हवा दे दी है मुख्यमंत्री धामी ने अपने बयान में कहा कि –

‘‘नए जिलों के गठन की मांग काफी लम्बे समय से चली आ रही है, इसे लेकर हम जल्द ही अपने जनप्रतिनिधियों से चर्चा करेंगे की राज्य में कहाँ कहाँ नये जिलों का पुनर्गठन किया जा सकता है इसके बाद इस दिशा में आगे बढ़ेंगे‘‘ “The demand for the formation of new districts has been going on for a long time, we will soon discuss with our public representatives that where in the state where new districts can be reconstituted, after that we will move forward in this direction.” – CM Dhami 

कैसे होती है नये जिलों के निर्माण की प्रक्रिया (How is the process of creation of new districts)

किसी भी राज्य में नए जिलों के निर्माण की शक्ति राज्य सरकार के पास होती है। नया जिला बनने का निर्णय मुख्यमंत्री ले सकते है, इसके लिए मुख्यमंत्री एक कार्यकारी आदेश दे सकते है अन्यथा विधानसभा में कानून पारित कर के नए जिले का निर्माण कर सकते है। नये जिले के लिए प्रपोजल स्टेट रेवेन्यू डिपार्टमेंट या बोर्ड ऑफ रेवेन्यू जो राज्य में मौजूद है उसकी ओर से रखा जाता है रेवेन्यू डिपार्टमेंट की तरफ से कमिटी गठित की जाती है जो प्रपोजल को देखती है इसके बाद राज्य सरकार की ओर से बड़ा फैसला लिया जाता है। राज्य में नया जिला बनाना हो या पुराना जिला समाप्त करना हो या किसी जिले का परिसीमन करवाना हो उन सबका अधिकार राज्य सरकार के पास होता है। केंद्र सरकार का इस प्रकिया में शून्य के बराबर दखल होता है ग्रह मंत्रालय केवल वही पर दखल देता है जब किसी शहर के रेलवे स्टेशन का नाम बदलने चाहते हो।

नये जिलों के गठन से विकास की गति में बढ़ोतरी (With the formation of new districts, the pace of development will increase.) –

किसी भी इलाके को जिला बनाने पर उस इलाके में विकास की संभावनायें बढ़ जाती है, कानून व्यवस्था सुधार जाती है कारण है कि प्रशासनिक तोर पर जिलाधिकारी ओर कप्तान अर्थात पुलिस का जिले स्तर का सबसे बड़ा अधिकारी की मोनिटरिंग बढ़ जाती है, सरकारी योजनाओं का लाभ जिले में कम लोग होने से अधिक से अधिक संख्या में लोगों को मिलता है, जैसे ही जिला मुख्यालय की दूरियां गांव, शहरों से घटेगी , वैसे ही प्रशासन और जिले के लोगो के बीच संवाद बढेगा, सड़क, बिजली, पानी सफाई जैसी मूलभूत सुविधाओं में इस से सुधार होगा, लोगो को जिले में ज्यादा अवसर मिलेंगे, सरकारी दफ्तरों में कार्य आसान और जल्द होगा, नये जिले के निर्माण से कही न कही जिले के युवाओं को रोजगार में सहायता मिलेगी.

नये जिले बनने में राज्य सरकारों के सामने चुनोतियाँ का जाल (The challenges before the state governments in the formation of new districts)- 

राज्य में नए ज़िले बनने में कुछ कठनाइयों का भी सामना करना पड़ता है जैसे कि राज्य सरकार को विभिन विभागों की कार्य स्थान के लिए जगह खोजनी पड़ती है ,विभागों में नये पदों को भरना के लिए आवश्यक कदम उठाने पड़ते है, जिस सबके लिए एक बढ़े सरकारी ख़जाने की आवश्यकता होती है, यदि जिला बहुत छोटा है तो वहाँ प्रशासन संबंधित काम कम हो जायँगे इसके अलावा अधिक ओर छोटे जिले का निर्माण राज्य के लिए जिला प्रबधन का काम कठिन हो जायेगा ।

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