श्रीनगर : पहाड़ की संस्कृति का अटूट हिस्सा रहे पौराणिक धरोहर भैलो का श्रीनगर कोतवाली में आयोजन किया गया। यहॉ पुलिसकर्मियों ने भेलू का आनंद लेते हुए परिजनों के साथ जमकर भेलू खेला। भेलू में पुलिस कर्मियों के परिजनों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

पुलिस कॉलोनी में रहने वाले पुलिसकर्मियों के परिजनों में रीना पैंथवाल ने बताया कि पहली बार थाने में पहाड़ की संस्कृति को पुर्नजीवित करने का प्रयास किया गया है। साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी भेलू के बारे में अवगत कराया गया। प्रभारी निरिक्षक हरीओम राज चौहान ने बताया िकइस वर्ष दिवाली को खास बनाने के लिए पुलिसकर्मियों द्वारा पहाड़ की संस्कृति के संरक्षण का छोटा सा प्रयास किया गया। जिसमें सभी ने बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया और भेलू का आनंद लिया। भेलू तैयार करने में बाजार चौकी इंजार्च रणबीर रमोला ने अह्म भूमिका निभाई। वहीं इस मौके पर पुलिस परिवार के रीना पैंथवाल, बबली रमोला, मनीषा रमोला, मनस्वी, तेजस्वी व अपूर्वा आदि मौजूद रहे।
भैलों पहाड की संस्कृति का है अह्म हिस्सा-
दीपावली (जिसे पहाड़ में ईगास या बग्वाल भी कहा जाता है) के दिन आतिशबाजी के बजाय भैलो खेलने की परंपरा है। बड़ी दिवाली के दिन यह मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। बग्वाल यानी दिवाली के दिन भैलो खेलने की परंपरा पहाड़ में सदियों पुरानी है। भैलो को चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से तैयार किया जाता है।
ऐसे होता है भेलो तैयार –
रस्सी में चीड़ की लकड़ियों की छोटी-छोटी गांठ बांधी जाती है। जिसके बाद खुले स्थान पर पहुंच कर लोगों द्वारा भैलो को आग लगाया जाता हैं। इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर सावधानीपूर्वक उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं। इसे ही भैलो खेलना कहा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है। भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परंपरा भी है।