श्रीनगर गढ़वाल के प्राचीन कमलेश्वर मंदिर में एक अनोखी पूजा का आयोजन किया जाता है। जिसे घृत कमल पूजा कहा जाता है। यह पूजा पूरे भारत में सिर्फ कमलेश्वर मंदिर में होती है। इस पूजा मे शिवलिग का घी से श्रृगार करने के साथ मन्दिर के महन्त नग्न अवस्था मे जमीन पर लेटकर भगवान शिव की आराधना व मंदिर की परिक्रमा करते हैं। आखिर क्या है घृत कमल पूजा के पीछे की किवदंती व मान्यता पढ़े इस लेख में –
- कमलेश्वर महादेव मंदिर
- घृत कमल अनुष्ठान
- अनुश्ठान के पीछे की कहानी
- कलयुग में भी आस्था
कमलेश्वर महादेव मंदिर (Kamleshwar Mahadev Tempel)
स्कन्दपुराण के केदारखण्ड के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम, रावण का वध कर जब ब्रह्महत्या के पाप से कलंकित हुये तो गुरु वशिष्ट की आज्ञानुसार वे भगवान शिव की उपासना करने के लिए देवभूमि उत्तराखण्ड़ में आये। श्री राम ने इस स्थान पर आकर सहस्त्रकमलों से भगवान शिव की उपासना की जिससे इस स्थान का नाम कमलेश्वर महादेव पड़ गया। यह देवभूमि गढ़वाल के अतिप्राचीनतम शिवालयों में से एक महत्वपूर्ण शिवालय है कमलेश्वर महादेव मन्दिर। इस मन्दिर के पार्श्व भाग में गणेश एवं शंकराचार्य की मूर्तियां हैं। मुख्यमन्दिर के एक और कमरे में बने सरस्वती गंगा तथा अन्नपूर्णा की धातु मूर्तियां हैं। शिववाहन नन्दी कि एक विशाल कलात्मक पीतल की मूर्ति मुख्य मन्दिर से संलग्न स्थित है। मन्दिर में ही मदमहेश्वर महादेव का पीतल का मुखौटा भी स्थित है। कमलेश्वर महादेव मन्दिर कि रचना मूल रूप से शंकराचार्य ने कराई थी। तथा इसका जीर्णोद्धार उद्योगपति बिड़ला जी ने करवाया था।
घृत कमल अनुष्ठान (Ghirt Kamal Anusthan)
उत्तराखण्ड के श्रीनगर गढवाल स्थित कम्लेक्ष्वर महादेव मंदिर में माघ महीनें की शुक्ल पक्ष सप्तमी को यह अनुष्ठान किया जाता है। इस दिन यहॉ भगवान शिव को ध्यान मुद्रा से जगाने के लिए घृत कमल का अनुष्छान किया जाता है। भक्ति मे डूबे लोग, भोले नाथ की एक झलक पाने के लिए रातभर लालहित रहते है। सुबह से ही अनुष्ठान को लेकर तैयारियाॅ शुरू कर दी जाती है। साम होते ही पूजा अर्चना शुरू कर दी जाती है। इस अनुष्ठान में भगवान शिव के लिंग के उपर 200 किलो घी से ढककर भगवान शिव को 56 प्रकार के भोग लगाकर लोगो के शुख समृदि की कामना की जाती है। साथ ही 101 कमल शिव लिंग पर चड़ाये जाते है साथ ही कमलेश्वर के महन्त इस अनोखी पूजा में मात्र लंगोट धारण कर नग्न अवस्था में लोट कर मंदिर की परिक्रमा करते है। यह परिक्रमा महन्त द्वारा चार बार की जाती है। सैकड़ो की संख्या में पहुंचे श्रद्वालू इस अनोखी परंम्परा को देखने मन्दिर मे पहुचते है। श्रद्वालुओ के मुह से ऐसी परम्परा देख कर सिर्फ एक ही शब्द निकलते है बम-बम भोले- बम-बम भोले।

अनुश्ठान के पीछे की कहानी (The story behind the ritual)
माना जाता है कि ताडकासुर को वरदान था कि वह भगवान शिव के पुत्र से ही उसकी मृत्यु होगी परन्तु भगवान शिव की पहली पत्नी सती की मृत्यु होने पर भगवान शिव ध्यान में लीन हो गये थे । तारकासुर के अत्याचार से परेशान होकर ऋषि मुनी व देवी देवता भगवान शिव को हिमालय पुत्री से विवाह के लिए मनाने के लिए पूजा की गयी ताकि शिव का पुत्र हो सके और तारकासुर का वध हो पाये। इसलिए प्राचीन काल में इसी जगह इसी स्थान पर यह अनुष्ठान किया गया था जिसे घृत कमल पूजा कहा जाता है। अब इस युग में यह पूजा मंदिर के महन्त करते है। यह परम्परा सतयुग से चली आ रही है और आज भी की जा रही है। चैकाने वाले बात यह है कि पूरे देश में यह पूजा मात्र श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर मंदिर में ही की जाती है।

कलयुग में भी आस्था (Faith even in Kalyug)
भगवान शिव को घृहस्त जीवन में आने व काम शक्ति जागृत करने के लिए किया जाने वाला यह अनुष्ठान आज भी कमलेक्ष्वर महादेव मंदिर में उसी श्रद्वा के साथ किया जाता है। जैसे कि पौराणिक काल में आज इस पूजा के महत्व भले ही बदल गये हों लेकिन आज भी शिव के भक्त उसी श्रद्वा के साथ इस अनुष्ठान में प्रतिभाग करते हैं।
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