कमल पिमोली
आखिर नारी क्यों देख ओर समझ नही पा रही बाजार ने उसे एक वस्तु बना दिया है,, वो क्यों विरोध नही करती ? मसलन आप देखें गाडियों के विज्ञापन में नारी, अगरबत्ती के ऐड में महिला, शेविंग क्रीम के ऐड में महिला, डिओ के ऐड में महिला कि ये डिओ लगाओगे तो, खिंची चली आयेंगी ये, यहॉ तक की पुरुषों के इनर वियर में भी महिला।
क्या कभी आपने सोचा है कि जवानी की दहलीज पर कदम रख रहे 16-18 साल के बच्चों पर इन विज्ञापनों का क्या प्रभाव पड़ेगा, वैसे कई लोग यह भी कहेंगे कि ठीक तो है महिलायें पुरूषों को टक्कर दे रहीं हैं, टक्कर क्या एंटरटेमेंट इंडस्ट्री, विज्ञापन इंडस्ट्री में पुरूषों से आगे हैं।
कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे….पुरुष नहीं…..बहुत अच्छी बात है…..आप ही तय करे….
लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान, मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रीया नहीं…. और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका कतई ये मतलब नहीं कि हम उसका अपमान या उसके साथ दुर्वयवहार करेंगे। लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है कि एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे ? कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे अंग प्रदर्शन करती है..? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था….
सत्य ये है की अश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दुकान है। मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता (सेक्स) भी है।
‘‘भारतीय संस्कृति में स्त्री को विशेष स्थान दिया गया है। स्त्री को मॉ, देवी, सृष्टी आदि नामों से संबोधित किया जाता है। लेकिन आज नारी को जहॉ एक ओर सम्मान जनक स्थान दिया जाता है तो दूसरी ओर उसका सरेआम शोषण किया जा रहा है। आखिर क्यों ?
‘‘मुझे,, नॉन प्रोग्रेसिव या रूढ़िवादी भी कहा जा सकता है..कई मेरे विचारोँ से सहमत नहीं होंगे लेकिन बातो को जरा ठंडे दिमाग से सोचिये और किसी को बुरा लगे तो दिल से छमा मांगते हैं।‘‘