पौड़ी गढ़वाल : गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय में जी 20 समिट के तहत राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसमें हिमालयी राज्यों के 13 केंद्रीय विश्वविद्यालयों समेत पांच संस्थाओं के विषय विशेषज्ञ मौजूद रहे। इस दौरान वैज्ञानिकों ने हिमालय की सेहत को लेकर चिंता व्यक्त की। भारत इस वर्ष जी 20 की अध्यक्षता कर रहा है, देश व प्रदेश में जी 20 समिट के तहत बैठकें जारी हैं। उत्तराखण्ड़ के एकमात्र केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गढ़वाल विश्वविद्यालय में भी जी 20 के तहत राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। आयोजित कांफ्रेस में हिमालयी क्षेत्र के 13 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के संगठन समेत पांच संस्थाओं के विषय विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। रिसर्च एंड इनफार्मेशन सिस्टम फ़ॉर डेवलपिंग कन्ट्रीज के प्रो शैषाद्री रामानुजमचारी ने कहा कि यहॉ हिमालय की सेहत और किस तरीके से हिमालय को क्षति पहुॅचाने के बजाए विकास किया जाए इसे लेकर चर्चा की गई। वैज्ञानिकों का कहना है कि हाल के वर्षो में हिमालय में हुए बदलाव डराने वाले हैं, यहॉ की पारिस्थितिकी में लगातार बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसका प्रभाव केवल उत्तराखण्ड़ व देश के अन्य हिमालयी राज्यों में नहीं बल्कि बंगाल की खाड़ी से लेकर अरब सागर तक पड़ता है। ऐसे में इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।
कुलपति प्रो अन्नपूर्णा नौटियाल ने कहा कि हमें हिमालय के लिये आवाज उठानी होगी। चीन हिमालय क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है यह हमारे देश के साथ हिमालय की सुरक्षा का मामला है। मसले के राजनीतिक हल के अलावा उन्होंने सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना के साथ हिमालयी संसाधनों के संतुलित दोहन की बात रखी। उन्होंने कहा कि ग्रीन इनर्जी के साथ विकास एक हल है। इस मामले में चीन की बराबरी करनी होगी और हमें अपनी कुछ जरूरतों भी पर रोक लगानी है।
वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के तहत ये समझा जाना चाहिए कि एक हिमालयी ग्लेशियर का पिघलना विश्व के एक बड़े भूभाग को प्रभवित करने वाली घटना है। जीडीपी का अर्थ ग्रोथ, डेवलपमेंट और पर्मानेंस के रूप में समझा जाना चाहिए।हमें पर्यावरण की कीमत पर विकास नहीं चाहिए। सतत विकास के मानक कुछ देश तय कर रहे हैं। इसके लिए भारत क्षेत्रीय हितों वाले मूल्यों की भी बात चाहता है। परिवर्तनशील संसार में अपरिवर्तनीय विकास खुशी पैदा करने वाला होना चाहिए। दुनिया को तीसरी सबसे बडी अर्थव्यस्था भारत की भावनाओं का सम्मान करना चाहिये। विकासशील देशों पर दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए। ग्लोबल प्रॉब्लम लोकल सोलुशन वाली सोच चाहिए। कलिंगा यूनिवर्सिटी के चेयरमैन चिंतामणि महापात्र ने कहा भारत के पास नेतृत्व का मौका ऐसे समय में आया दुनिया में कोल्ड और हॉट वॉर दोनों चल रहा है। भारत ने निर्गुट आंदोलन को नेतृत्व दिया है और वह विभाजक देशों के बीच पुल बनने में सक्षम है। पहली बार भारत ने सतत विकास का मुद्दा ठीक से उठा कर ऐसा किया है।
जेएनयू में यूएन स्टडीज के प्रो ए कुमार ने कहा जी 20 में जो उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं है उनके समक्ष विकास के साथ ही ऊर्जा की उपलब्धता एक बड़ा मसला है। अमेरिका के पास तकनीक है लेकिन मसला उसे बाकी दुनिया के साथ साझा करने का है। सतत विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए फॉसिल फ्यूल की खपत कम कर ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने की जरूरत है
प्रोफेसर सुनील नौटियाल हिमालय के सतत विकास हेतु कार्यप्रणाली एवं नीति विषय पर अपना संबोधन देते हुए वसुदेव कुटुंबकम के संदेश के साथ साथ भारतीय हिमालय क्षेत्रों के लिए महत्व एवं संपूर्ण विश्व के लिए आजीविका एवं जलवायु हेतु विशिष्टता पर जोर दिया।
इनके अलावा डॉ आर के मैखुरी, डॉ प्रकाश नौटियाल, डॉ प्रशांत कंडारी, डॉ जे सी कुनियाल, डॉ वाई पी सुंदरियाल, प्रो डी आर पुरोहित,डॉ नागेंद्र रावत आदि विद्वान इस विमर्श में शरीक होंगे। कार्यक्रम का संचालन प्रो आर सी सुंदरियाल ने अतिथिओं का स्वागत प्रति कुलपति प्रो आर सी भटट ने धन्यवाद ज्ञापित किया।